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ग़ज़ल
बेच दी क्यूँ ज़िंदगी दो-चार आने के लिए
एक दो लम्हा तो रखता मुस्कुराने के लिए
शिवकुमार बिलग्रामी
ग़ज़ल
हमारे पाँव डरते हैं तुम्हारे साथ चलने में
ज़रा सा वक़्त लगता है कभी निय्यत बदलने में
शिवकुमार बिलग्रामी
ग़ज़ल
न तो गुँध हूँ किसी फूल की न ही फूल हूँ किसी बाग़ का
किसी आँख को जो न भा सका वो उजाड़ हूँ किसी राग़ का
शिवकुमार बिलग्रामी
ग़ज़ल
दाग़ जो अब तक अयाँ हैं वो बता कैसे मिटें
फ़ासले जो दरमियाँ हैं वो बता कैसे मिटें